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मेरा वतन वही है

मेरा वतन वही है..... मेरा वतन वही है.....
चिश्ती ने जिस ज़मीं पर पैग़ामें- हक़ सुनाया
नानक ने जिस चमन में वहदत क़ा गीत गाया
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया
जिसने हिजाज़ियों से दश्ते-अरब छुड़ाया
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है...

यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था
सारे जहां को जिसने इल्म-ओ-हुनर दिया था
मिट्टी को जिसकी हक़ ने, ज़र क़ा असर दिया था
तुर्कों क़ा जिसने दामन, हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है...

टूटे थे जो सितारे फारस के आसमां से
फिर ताब देके जिसने, चमकाए कहकशां से
वहदत की लय सुनी थी, दुनिया ने जिस मकाँ से
मीरे-अरब को आई, ठंडी हवा जहां से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है...

बंदे कलीम जिसके, परबत जहां के सीना
नूहे-नबी क़ा आकर ठहरा जहां सफीना
रिफ़अत है जिस ज़मीं की, बामे-फ़लक़ क़ा जीना
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़ज़ा में जीना
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है...
_________अल्लामा इक़बाल