कभी चहकती भोर नहीं है"
आसमान में उड़ने का तो, ओर नहीं है छोर नहीं है।
लेकिन हूँ लाचार पास में बची हुई अब डोर नहीं है।।
दिवस ढला है, हुआ अन्धेरा, दूर-दूर तक नहीं सवेरा,
कब कट जाए पतंग सलोनी, साँसों पर कुछ जोर नहीं है।
तन चाहे हो भोला-भाला, लेकिन मन होता मतवाला,
जब होता अवसान प्राण का, तब जीवन का शोर नहीं है।
वो ही कर्ता, वो ही धर्ता, कुशल नियामक वो ही हर्ता,
जो उसकी माया को हर ले, ऐसा कोई चोर नहीं है।
“रूप” रंग होता मूरत में, आकर्षण होता सूरत में,
लेकिन माटी के पुतले में, कभी चहकती भोर नहीं है।
लेकिन माटी के पुतले में, कभी चहकती भोर नहीं है।
अन्जाने अपने हो जाते
अन्जाने अपने हो जाते,दिल से दिल मिल जाने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।
सूरज की क्या बात कहें,
चन्दा भी आग उगलता है,
साथ छोड़ जाती परछाई,
गर्दिश के दिन आने पर।
दूर-दूर से अच्छे लगते
वन-पर्वत, बहती नदियाँ,
कष्टों का अन्दाज़ा होता,
बाशिन्दे बन जाने पर।
पानी से पानी की समता,
कीचड़ दाग लगाती है,
साज और संगीत बताता,
सुर को ग़लत लगाने पर।
हर पत्थर हीरा नहीं होता,
ध्यान हमेशा ये रखना,
सोच-समझकर निर्णय लेना,
रत्नों को अपनाने में।
हर पत्थर हीरा नहीं होता,
ध्यान हमेशा ये रखना,
सोच-समझकर निर्णय लेना,
रत्नों को अपनाने में।
जो सुख-दुख में सहभागी हों,
वो मिलते हैं किस्मत से,
स्वर्ग, नर्क सा लगने लगता,
मन का मीत न पाने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।